किसान
चोर-लुटेरों की चंगुल से,
अब तो मुक्त किसान हुआ।
हो स्वतंत्र अब अन्न बिकेगा-
उसका अब कल्यान हुआ।।
अपनी फसल उगा किसान अब,
बिना बिचौलिया साथ लिए।
करेगा विक्रय उपज का अपनी,
बिना दलाली दाम दिए।
मिलेगा उसको उचित मूल्य -
उसका अब सम्मान हुआ।
अब तो मुक्त किसान हुआ।।
उत्तर-दक्षिण,पूरब-पश्चिम,
सभी प्रांतों में जाकर।
उन्मुक्त भाव से बेच सके,
वह उचित दाम अब पाकर।
देकर उसके श्रम की कीमत-
अद्भुत श्रम-गुणगान हुआ।।
अब तो मुक्त किसान हुआ।।
नहीं सियासत शोभित लगती,
इसे बनाकर मुद्दा अब।
तोड़-फोड़-हिंसा अपनाना,
कितना लगता भद्दा अब।
करके हित कृषकों का मित्रों-
भारत देश महान हुआ।।
अब तो मुक्त किसान हुआ।।
कृषक अन्न-दाता हैं सबके,
इनका सुख है सबका सुख।
इनको दुख यदि मिला कभी तो,
समझो वह है सबका दुख।
देकर इनको सुख-सुविधा ही-
जन-जन का ही मान हुआ।।
अब तो मुक्त किसान हुआ।।
'एक देश,बाज़ार एक' की,
हुई व्यवस्था उत्तम अब।
निज इच्छा अनुसार कृषक जा,
बेच सकेंगे फसलें सब।
देख व्यवस्था ऐसी अद्भुत-
विस्मित सकल जहान हुआ।।
अब तो मुक्त किसान हुआ।।
© डॉ0 हरि नाथ मिश्र
99194463 72
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