*कृषक*(दोहे)
कृषक बैल-हल से करे,सतत जुताई-काम।
उगा फसल यह अन्नप्रद, कर दे महि सुख-धाम।।
धरती-पुत्र किसान यह,करता कर्म महान।
बैल और हल ले दवा,करता भूख-निदान।।
मिट्टी से लथपथ बदन,काया से अति क्षीण।
पर किसान मन का सबल,रह निज कर्म प्रवीण।।
सूखी मिट्टी भुरभुरी,रबी- फसल-आधार।
गीली-कीचड़ से सनी,हो खरीफ़ दरकार।।
उगा फ़सल दोनों कृषक,करे जगत-कल्याण।
उदर सभी का भर रहा,रक्षक जन-जन-प्राण।।
वंदनीय हे कृषक तुम,हो धरती-भगवान।
हर ऋतु-प्रहरी हो तुम्हीं,हे नर कर्म-प्रधान।।
रहे स्वस्थ-संपन्न यह,सब जन करें प्रयास।
गो-रक्षक-पालक यही,करें न इसे उदास।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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