डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 


देखा जो मैंने आप को दिल को लुटाना आ गया।


लुट कर मुझे कुछ यूँ लगा जैसे खज़ाना आ गया।।


 


उदासियों में अब तलक कटती रही थी ज़िंदगी।


पाकर तुम्हें जीने का उसको अब बहाना आ गया।।


 


आ गए तुम गीत लेकर जो मधुर सुर-ताल का।


देखो,सिले होंठों को मेरे गीत गाना आ गया।।


 


खिल गईं कलियाँ सभी गुलशन महकने अब लगा।


काँटों के सँग सारे गुलों को मुस्कुराना आ गया।।


 


तिश्नगी जो प्यार की थी पा तुझे अब बुझ गयी।


प्यार में मस्ती ही मस्ती का ज़माना आ गया।।


 


अब तलक रोतीं रहीं आँखे जो सागर-जल भरीं।


पा तुम्हें उनको भी अब सबको हँसाना आ गया।।


 


छँट गईं काली घटाएँ भग गए तूफ़ान सारे।


देखते ही देखते ये, मौसम सुहाना आ गया।।


           ©डॉ0 हरि नाथ मिश्र


               9919446372


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