देखा जो मैंने आप को दिल को लुटाना आ गया।
लुट कर मुझे कुछ यूँ लगा जैसे खज़ाना आ गया।।
उदासियों में अब तलक कटती रही थी ज़िंदगी।
पाकर तुम्हें जीने का उसको अब बहाना आ गया।।
आ गए तुम गीत लेकर जो मधुर सुर-ताल का।
देखो,सिले होंठों को मेरे गीत गाना आ गया।।
खिल गईं कलियाँ सभी गुलशन महकने अब लगा।
काँटों के सँग सारे गुलों को मुस्कुराना आ गया।।
तिश्नगी जो प्यार की थी पा तुझे अब बुझ गयी।
प्यार में मस्ती ही मस्ती का ज़माना आ गया।।
अब तलक रोतीं रहीं आँखे जो सागर-जल भरीं।
पा तुम्हें उनको भी अब सबको हँसाना आ गया।।
छँट गईं काली घटाएँ भग गए तूफ़ान सारे।
देखते ही देखते ये, मौसम सुहाना आ गया।।
©डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
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