नीति-वचन-17
देहिं जलद जग अमरित पानी।
सुख-सीतलता बुधिजन-बानी।।
संत-संतई कबहुँ न जाए।
कीच भूइँ जस कमल खिलाए।।
नीम-स्वाद यद्यपि प्रतिकूला।
पर प्रभाव स्वास्थ्य अनुकूला।।
गर्दभि गर्भहिं अस्व असंभव।
खल-कर सुकरम होय न संभव।।
नहिं भरोस कबहूँ बड़बोला।
खल-मुस्कान कपट मन भोला।।
दूध-दही-मक्खन-घृत-तेला।
जदपि स्वाद इन्हकर अलबेला।।
पर जब होय भोग अधिकाई।
हो प्रभाव जस कीट मिठाई।।
आसन-असन-बसन अरु बासन।
चाहैं सभ अनुकूल प्रसासन।।
बट तरु तरि जदि पौध लगावा।
करहु जतन पर फर नहिं पावा।।
दोहा-रबि-ससि-गरहन होय तब,महि जब आवै बीच।
बीच-बिचौली जे करै,फँसै जाइ ऊ कीच ।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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