आओ बैठो पास हमारे,
अपलक तुम्हें निहारूँ, प्रियतम।
बहुत दिनों से थे तुम ओझल-
आओ पाँव पखारूँ, प्रियतम।।
जब तक थे तुम साथ हमारे,
मन-बगिया में हरियाली थी।
ले सुगंध साँसों की तेरी,
बही हवा जो मतवाली थी।
उलझे-उलझे केश तुम्हारे-
आओ केश सवाँरूँ,प्रियतम।
आओ बैठो पास हमारे,
अपलक तुम्हें निहारूँ,प्रियतम।।
बहुत दिनों के बाद मिले हो,
अब जाने का नाम न लेना।
रह कर साथ सदा अब मेरे,
डगमग जीवन-नैया खेना।
तेरी अनुपम-अद्भुत छवि को-
आओ, हृद में धारूँ, प्रियतम।
आओ बैठो पास हमारे,
अपलक तुम्हें निहारूँ ,प्रियतम।।
तुम दीपक मैं बाती साजन,
प्रेम-तेल पा ही दिया जले।
प्रेम-ज्योति के उजियारे में,
जीवन-तरुवर की डाल फले।
भर लो अपनी अब बाहों में-
तन-मन तुझपर वारूँ,प्रियतम।
आओ बैठो पास हमारे,
अपलक तुम्हें निहारूँ,प्रियतम।।
नहीं साथ थे जब तुम मेरे,
मैं थी तकती राहें तेरी।
बड़े भाग्य से आज मिले हो।
बंद हुईं अब आहें मेरी।
तुम्हीं देवता मन-मंदिर के-
तुमको सदा पुकारूँ,प्रियतम।
आओ बैठो पास हमारे,
अपलक तुम्हें निहारूँ,प्रियतम।।
तुम समीप जो बैठे मेरे,
देखो,चंदा इठलाता है।
बोले पपिहा दूर कहीं से,
पी-पी उसका अब भाता है।
अब तो नैन मिलाकर तुमसे-
नित-नित प्रेम निखारूँ,प्रियतम।
आओ बैठो पास हमारे,
अपलक तुम्हें निहारूँ,प्रियतम।।
मन कहता है कहीं दूर जा,
नीले गगन की छाँवों तले।
चंचल नदी-किनारे बैठें,
पवन सुगंधित भी जहाँ चले।
तुम्हें बिठाकर निज गोदी में-
हिकभर तुम्हें दुलारूँ, प्रियतम।
आओ बैठो पास हमारे,
अपलक तुम्हें निहारूँ,प्रियतम।।
©डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
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