आठवाँ अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-5
ग्वाल-बाल लइ साथे-साथे।
फोरहिं मटकी गोपिन्ह माथे।।
घर मा घुसि के कबहुँ कन्हाई।
ग्वाल-बाल सँग मक्खन खाई।।
भागहिं इत-उत पकरि न पावहिं।
जदपि कि गोपिहिं पाछे धावहिं।।
बछरू छोरि पियावहिं गैया।
चोरी-चोरी किसुन कन्हैया।।
डाँट परे जब हँसहिं ठठाई।
तब भागै जनु पीर पराई।।
बड़ नटखट तव लाल जसोदा।
कहि-कहि गोपिन्ह लेवहिं गोदा।।
बहु-बहु जतन करै तव लाला।
चोरी-चोरी जाइ गोसाला।।
बछरू-गैयन छोरि भगावै।
निज मुख कबहूँ थनइ लगावै।।
खाइ-बहावै-फोरै गागर।
तोर लला ई नटवर नागर।।
ग्वाल-बाल सँग खाइक माखन।
कछुक देइ ई बनरन्ह चाखन।।
सुनउ जसोदा गोपी कहहीं।
कबहुँ त लला तोर अस करहीं।।
सोवत सिसुन्ह रोवाइ क भागै।
माखन मिलै न गृह जब लागै।।
निन्ह हाथ नहिं पहुँचै छीका।
चढ़ि ऊखल पर तुरत सटीका।।
अथवा धयि पीढ़ा दुइ-चारा।
तापर चढ़ि तहँ पहुँचि दुलारा।।
कबहुँ-कबहुँ चढ़ि गोपिन्ह काँधे।
पहुँचै जहाँ लच्छ रह साधे।।
मटका भुइँ उतारि सभ खावैं।
जदपि सतावहिं पर बड़ भावैं।।
दोहा-तोर लला बड़ ढीठ अह,चंचल-नटखट-चोर।
सुनहु जसोदा गृहहिं महँ,प्रबिसइ बिनु करि सोर।।
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
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