डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 


लिए समर्पण-भाव हृदय में,


अपनी बाँह पसारे हैं।


आओ, प्रियवर देख रहे पथ-


मादक नैन हमारे हैं।।


 


चाहत के आँगन में अपने,


हमने सेज सजाई है।


नील गगन की चंद्र-चंद्रिका,


दिलवर, देख बुलाई है।


प्रेम-सुमन से सभी सुगंधित-


घर-आँगन-चौबारे हैं।


       मादक नैन हमारे हैं।।


 


शीतल-मंद समीर सुगंधित,


मन में भाव जगाता है।


पिया-मिलन का भाव हृदय में,


बार-बार उकसाता है।


बिंदी-काजल-कंगन-चूड़ी-


पहन शरीर सवाँरे हैं।


       मादक नैन हमारे हैं।।


 


प्रेम प्यास-विश्वास-आस है।


इसकी शुचिता न्यारी है।


प्रेम-भावना विमल सोच है,


सभी सोच पर भारी है।


सदियों से हम इसी सोच को-


साजन,उर में धारे हैं।


       मादक नैन हमारे हैं।।


 


प्यासी नदी सिंधु से मिलती,


जल-बूँदों का धरा-मिलन।


रस-पराग-मकरंद हेतु ही,


होता भौंरों का गुंजन।


इस नैसर्गिग सहज मिलन को-


खड़े आज हम द्वारे हैं।


       मादक नैन हमारे हैं।


 


करें यत्न हम दोनों मिलकर,


प्रेम-ज्योति यह जला करे।


हरे तिमिर घनघोर जगत का,


भटके जन का भला करे।


सच्चे प्रेमी तूफानों से-


नहीं कभी भी हारे हैं।


     आओ, प्रियवर देख रहे पथ,


      मादक नैन हमारे हैं।।


              ©डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                  9919446372


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