डॉ0 निर्मला शर्मा दौसा राजस्थान

मर्यादा


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सतयुग से लेकर कलियुग तक


पृथ्वी से लेकर अम्बर तक


हर युग मैं टूटती आईं है मर्यादा


कभी सीता की अग्निपरीक्षा मैं


कभी द्रोपदी के खिंचते चीर मैं


बिखरती आई है------ मर्यादा


कभी अहिल्या के पाषाण रूप मैं


कभी शकुंतला के मन की पीर मैं


सिसकती रही है वर्षों से मर्यादा


सदैव ही संसार ने स्त्री को ही बाँधा


पुरुष की कभी निर्धारित नहीं हुई मर्यादा


मर्यादा शब्द के इस भारी बोझ तले 


आज भी स्त्रियाँ ही आहत हैं ज्यादा


मर्यादा की सीमा क्या है?


क्या है इसका विधान?


कौन बनाएगा समाज मैं स्त्री-पुरुष की मर्यादा----------?


अब तो जागिये मर्यादा के रक्षकों


समाज को डसने लगी है ये 


खोखली मर्यादा


बचाइए इस भारतीय सभ्यता को कहीं कालांतर मैं अनाचारों और बलात्कारों से न जानी जाये ये भारत माँ----------------।


 


 


डॉ. निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


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