लो हो गया रावण दहन
साल
दर साल
बुराई के प्रतीक
रावण का पुतला
बड़ा
-बड़ा और
भी बड़ा होता
जा रहा है।
समाज
भी तामसिक
वृत्ति के बोझ तले
दबता जा रहा है।
जला
कर पुतला
बुराई का सोचते
हैं हम यूँ
बुराई
मिट गई
संसार से खुशियाँ
खोजते हैं ज्यों
बढ़ा
है कद
अगर रावण का
तो दहला है
कलेजा
हर क्षण
व्यथित होती वैदेही
का।
कलियुग में
अब न कोई
राम जन्मे हैं
न
होगा अंत
रावण का।
अगर
रावण जलाना है
तो मन के
द्वार सब खोलो
जला
दो तामसिक
वृत्ति करो तृष्णा
का मन मे दमन
जागृत
होगी अगर
आत्मा मिटेगा हर
कलुष मन का।
जलेगा
धूँ-धूँ
कर रावण
हो जाएगा उसका
संसार से गमन।
डॉ0 निर्मला शर्मा
दौसा राजस्थान
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