गीत
करने पूर्ण प्यास-आस को,
नदी समंदर से मिलती।
हिम-शिख से वह उतर अवनि पर-
कल-कल,छल-छल नित बहती।।
जग की शोभा बनी रहे,
विटप सदा फल दिया करें।
माँ सी प्यारी धरती माता-
बूँदी-घात सदा सहती।।
फसल-फूल-फल-अन्न अवनि दे,
पेट है भरती जीवों का।
चीड़-फाड़ जब उसका होता-
कभी नहीं क्रंदन करती।।
लुट जाती है गंध हवा में,
चमन-पुष्प की शोभा जो।
लुट जाने में सुख वो पाती-
निज उर व्यथा नहीं कहती।।
सरल भाव से सिंधु सौंपता,
निज उर मोती दुनिया को।
पा मोती को छलिया दुनिया-
निज धन कह झोली भरती।।
सूरज-चाँद-सितारे नभ के,
मिल अँधियारा दूर करें।
बिना तेल-बाती के इनकी-
ज्योति सतत जलती रहती।।
जीवन के हर प्रश्न का उत्तर,
हल हर जटिल समस्या का।
देती क़ुदरत मुदित भाव से-
टाल-मटोल नहीं करती।।
हम हैं प्रश्न और हम उत्तर,
हार-जीत के कारण हम।
सबक फूल-काँटों से सीखो-
दोनों में कैसे निभती!!
© डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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