डॉ0हरि नाथ मिश्र

* तृतीय चरण*(श्रीरामचरितबखान)-28


पुनि मुनि नारद मुनि सन कहहीं।


नाथ बताउ संत कस जगहीं।।


    काम-क्रोध-मद-लोभ न जाको।


    मोह- बिहीन संत कहु ताको।।


पाप रहित-निरछल-कबि-जोगी।


सत्यनिष्ठ-अनिच्छ-मितभोगी।।।


     बाहर-भीतर एक समाना।


     त्यागी-बोधी जे जग जाना।।


धरम-प्रबीन,धीर-मद हीना।


पद सरोज पूजहि प्रति दीना।।


     सकुचहि बहु निज जानि प्रसंसा।


    थकहि न करि पर गुन अनुसंसा।।


नित देवे पर जन सम्माना।


रुष्ट न होय पाइ अपमाना।।


      ब्रत-तप-जप अरु गुरु-पद-प्रेमी।


       प्रमुदित मन अरु संजम-नेमी।।


छिमा-दया अरु प्रीति-मिताई।


मानै सकल जगत जनु भाई।।


      ग्यानी-बिनई, गुनी-बिबेकी।


       मान-दंभ-मद बिनु बड़ नेकी।।


ऋषि-मुनि जे सज्जन अरु नामी।


भूलि न होय कुमारग-गामी ।।


      मरम बुझै जे बेद-पुराना।


        मम लीला जे करै बखाना।।


अस नर होय जगत महँ संता।


सुचि मन पूजै नित भगवंता।।


दोहा-अस बखान प्रभु-मुख सुनत,चरन छुए मुनि धाहिं।


        प्रभु-पद-पंकज-रज लिए,ब्रह्मपुरी पुनि जाहिं।।


        कहि न सकहिं अस चरित जग,सारद-सेष-महेस।


        दीनबंधु प्रभु राम जस,निज मुख कहे बिसेष ।।


        ते नर पावहिं दृढ़ भगति,करहिं राम जे प्रेम।


        पावन मन नित प्रभु भजहिं,बिनु बिराग जप-नेम।।


        राम-भजन सतसंग तें, मनुज होय उद्धार।


        सुंदर तन जानउ ठगिनि, होय न बेड़ा पार।।


                         डॉ0हरि नाथ मिश्र


                          9919446372


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...