* तृतीय चरण*(श्रीरामचरितबखान)-28
पुनि मुनि नारद मुनि सन कहहीं।
नाथ बताउ संत कस जगहीं।।
काम-क्रोध-मद-लोभ न जाको।
मोह- बिहीन संत कहु ताको।।
पाप रहित-निरछल-कबि-जोगी।
सत्यनिष्ठ-अनिच्छ-मितभोगी।।।
बाहर-भीतर एक समाना।
त्यागी-बोधी जे जग जाना।।
धरम-प्रबीन,धीर-मद हीना।
पद सरोज पूजहि प्रति दीना।।
सकुचहि बहु निज जानि प्रसंसा।
थकहि न करि पर गुन अनुसंसा।।
नित देवे पर जन सम्माना।
रुष्ट न होय पाइ अपमाना।।
ब्रत-तप-जप अरु गुरु-पद-प्रेमी।
प्रमुदित मन अरु संजम-नेमी।।
छिमा-दया अरु प्रीति-मिताई।
मानै सकल जगत जनु भाई।।
ग्यानी-बिनई, गुनी-बिबेकी।
मान-दंभ-मद बिनु बड़ नेकी।।
ऋषि-मुनि जे सज्जन अरु नामी।
भूलि न होय कुमारग-गामी ।।
मरम बुझै जे बेद-पुराना।
मम लीला जे करै बखाना।।
अस नर होय जगत महँ संता।
सुचि मन पूजै नित भगवंता।।
दोहा-अस बखान प्रभु-मुख सुनत,चरन छुए मुनि धाहिं।
प्रभु-पद-पंकज-रज लिए,ब्रह्मपुरी पुनि जाहिं।।
कहि न सकहिं अस चरित जग,सारद-सेष-महेस।
दीनबंधु प्रभु राम जस,निज मुख कहे बिसेष ।।
ते नर पावहिं दृढ़ भगति,करहिं राम जे प्रेम।
पावन मन नित प्रभु भजहिं,बिनु बिराग जप-नेम।।
राम-भजन सतसंग तें, मनुज होय उद्धार।
सुंदर तन जानउ ठगिनि, होय न बेड़ा पार।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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