समाज का सुधार भी करें
और खुद को भी सुधारें।
औरों की ही गलती ही नहीं
अंतःकरण को भी निहारें।।
विजय दशमी का यह पर्व
है बुराई पर जीत का।
बस पुतला दहन ही काफी
नहीं भीतर का रावण मारें।।
*2................*
हमारे भीतर छिपा दशानन
उसको भी हमें हराना है।
काट काट कर दसशीश हमें
नामो निशान मिटाना है।।
यही होगा विजयदशमी पर्व
का सच्चा हर्ष उल्ल्हास।
अपने भीतर के रावण पर
ही हमें विजय को पाना है।।
एस के कपूर श्री हंस।।।।।बरेली।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें