एस के कपूर श्री हंस

आज के नौनिहाल, कल के


कर्ण धार हैं।।


 


गुम सा आज बचपन और


गायब रुनझुन है।


आंगन का खेला और


गायब चुन मून है।।


बच्चे बन गये मानो चाबी


का कोई खिलौना।


बारिश का पानी और गायब


कश्ती की सुन सुन है।।


 


आ गया ऑटोमैटिक का


नया दौर है।


मोबाइल पे उंगलियाँ और


नहीं भाग दौड़ है।।


ऑन लाइन संस्कार और


संस्कृति आते नहीं।


उम्र से पहले बड़े हो रहे


नहीं कोई गौर है।।


 


किधर जा रही परवरिश


जरूरत है देखने की।


कुछ गलत कर सीख रहे


जरूरत है रोकने की।।


गीली मिट्टी उनकीऔर राहें 


हैं फिसलती हुई।


थामना बहुतआवश्यक और


जरूरत है सोचने की।।


 


पहले दिनऔर पहले सबक


से संस्कार जरूरी है।


बचपन में मासूमियत से न


बन जाये दूरी है।।


वक़्त निकल गया तो फिर


हाथ नहीं आयेगा।


बच्चों को समय न दे पायो


ये कैसी मजबूरी है।।


                  


कल पर मत टालो आज का


ही समय सिखाने का।


अच्छा बुरा सही गलत का


भेद उन्हें बताने का।।


आज के नौनिहाल देश के


कर्ण धार हैं बच्चे।


हम सब पर ही भार है देश का


भविष्य बनाने का।।


एस के कपूर श्री हंस


*बरेली।


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