आसमान ऊँचा नहीं,उड़ने का
तरीका आना चाहिए।।
सुखों पर लगा कर ताला
हम चाबी ढूंढते हैं।
खुशियां होती सामने और
हम चूकते हैं।।
टूटी कलम औरों से जलन
भाग्य लिख नहीं सकते।
कर्म और व्यवहार समय
पर ही भूलते हैं।।
अपने कर्मों के उत्तराधिकारी
हम स्वयं होते हैं।
यदि चाहें तो सीख कर हम
संस्कारी खुद ही होते हैं।।
दौलत नहीं जीने का सलीका
होता है ज्यादा जरूरी।
ज्ञानवान या विचार भिखारी
हम खुद ही होते हैं।।
ऊँचा नहींआसमान बस उड़ने
का तरीका आना चाहिये।
हर बात में छिपी बात समझने
का सलीका आना चाहिये।।
माना कि जन्म मरण हमारे
अपने हाथ में नही होता।
पर अपने किरदार को गढ़ने
का बजीफ़ा आना चाहिए।।
एस के कपूर श्री हंस
बरेली।।
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