यह सच्ची दोस्ती इक बेशकीमती
दौलत है जहान की।
ये दिल से निकले आशार हैं
इन्हें आरपार जाने दो।
हम तेरी दोस्ती के हकदार हैं
हमें प्यार पाने दो।।
तेरी सच्ची दोस्ती एक नेमत
जो हमने पाई है।
अपने रंजो गम भी बेफिक्र
हम तक आने दो।।
दोस्त के घर की राह कभी
लंबी नहीं होती।
दोस्ती जो होती सच्ची कभी
दंभी नहीं होती।।
दो जिस्म एक जान मानिये
सच्ची दोस्ती को।
ऐसी दोस्ती जानिये कभी
घमंडी नहीं होती।।
सच्ची दोस्ती में गरूर नहीं
गर्व होता है।
एक को लगे चोट दूसरे को
दर्द होता है।।
इक सोच इक नज़र इक नज़रिया
है बन जाता।
मैं नहीं वहाँ पर सिर्फ हम का ही
हर्फ होता है।।
सच्ची दोस्ती में स्वार्थ नहीं बस
विश्वास होता है।
इस सच्ची दौलत में बसआपस का
आस होता है।।
ढूंढते बस अच्छाई ही बुराई की तो
बात होती नहीं।
गर भीग जाये एक तो फिर दूसरा
लिबास होता है।।
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आजकल घर नहीं ,पत्थर के मकान होते हैं।
*प्रेम* से शून्य खामोश, दिल वीरान होते हैं।।
घर को रैन बसेरा कहना, ही ठीक होगा।
कुत्ते से सावधान दरवाजे, की शान होते हैं।।
घर में *प्रेम* भाव नहीं, सूने से ठिकाने हैं।
मकान में कम बोलते ,मानो कि बेगाने हैं।।
सूर्य चंद्रमा की किरणें ,नहीं आती हैं यहां।
संस्कारों की बात वाले, हो चुके पुराने हैं।।
हर किरदार में अहम , का भाव होता है।
स्नेह *प्रेम* नहीं दीवारों ,से लगाव होता है।।
समर्पण का समय ,नहीं किसी के पास।
आस्था आशीर्वाद का ,नहीं बहाव होता है।।
आदमी नहीं मशीनों , का वास होता है।
पैसे की चमक का, असर खास होता है।।
मूर्तियाँ ईश्वर की होती, बहुत ही आलीशान।
पर उनसे *प्रेम* कहीं नहीं, आसपास होता है।।
*प्रेम* विहीन यहां पर,ऊंचे मचान होते हैं।
मतलब के ही आते, मेहमान होते हैं।।
दौलत से मिलती , नकली खुशी यहाँ।
पैसे पर खड़े घर नहीं ,बड़े मकान होते हैं।।
एस के कपूर श्री हंस
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