*रचना शीर्षक।।*
*हर जुबां पर महोब्बत को*
*सलाम हो जाये।।*
काँटों की खेती करता हूँ
फूल बन कर।
गुलों की हिफाज़त करता
हूँ शूल बन कर।।
गमों में भी मुस्कराता हूँ कि
तबियत ऐसी ही मेरी।
हँसता हूँ सामने सबके बस
एक असूल बन कर।।
दुआ सबकी चाहिये बददुआ
किसी की लेता नहीं।
सौदा प्यार का करता हूँ और
नफरत को देता नहीं।।
मैं ही अव्वल नहीं कोई ऐसा
रखता यकीन।
जुबान मीठी रखता हूँ बात
कड़वी कहता नहीं।।
रिश्तों में झुक जाना बात
अजीब लगती नहीं है।
किसी का दिल मुझसे दुखे ये
तहजीब लगती नहीं है।।
सूरज भी तो ढल जाता है
चांद के लिए हमेशा।
झूठ को सच बना जीतूं सही
तरकीब लगती नहीं है।।
अल्फाजों का रखता हूँ ध्यान
कि मेरा किरदार बनाते है।
शब्द हमेशा मीठे ही कि यह
मेरा व्यवहार बनाते हैं।।
हालात हों खराब तो भी मैं
हौंसला खोता नहीं।
ये सबब परेशानियों के मुझे
और दिलदार बनाते हैं।।
दिल चाहता खूबसूरत सबेरा
ओ सुहानी शाम हो जाये।
दुनिया में बहुत ऊपर प्रेम का
पैगाम हो जाये।।
कुछ यूँ हो कुदरत का कोई
अजब सा करिश्मा।
कि हर जुबां पर महोब्बत
को सलाम हो जाये।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।*
मोब।। 9897071046
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