*रचना शीर्षक।।एक अवगुण*
*क्रोध का सौ गुणों पर*
*भारी है।।*
क्रोध जलते कोयले सा
जो तूने पकड़ रखा है।
इस घृणा की अग्नि ने
तुझे जकड़ रखा है।।
यह आग तुझ को भी
जला कर खाक करेगी।
इसी अहम भाव ने तेरे
भाग्य को रगड़ रखा है।।
क्रोध आता नहीं अकेले
लेकर आता है चार।
क्रोध के साथी तो ईर्ष्या
और आ जाता अहंकार।।
दूसरे का नहीं अपना
होता अधिक नुकसान।
नम्रता हो जाती विलुप्त
और लाता है अंधकार।।
सोच विचार दृष्टि पर
छा जाती मैली चादर।
मानसिकता मनुष्य की
भूल जाती भाव आदर।।
कलुष भावना का लग
जाता ग्रहण आदमी को।
आदत हर किसी का
करती जाती है अनादर।।
क्रोध का त्याग ही उन्नति
का मार्ग प्रशस्त करता है।
आदमी होता लोकप्रिय
तेजी से आगे बढ़ता है।।
सौ गुण व्यक्ति के होने
होने लगते हैं उजागर।
जो एकअवगुण क्रोध का
बस मनुष्य तजता है।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।*
मोब।। 9897071046
8218685464
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें