एस के कपूर श्री हंस

खिलना है


गुलाब सा तो काँटों से भी


मेल करो।।


 


खिलना है गुलाब सा तो


काँटो से भी मेल रखो।


जीवन में धूप छाँव का


भी हर खेल रखो।।


तप कर ही सोना भी 


बनता है तब चन्दन।


छिप कर पीछे नहीं बस


बढ़ने की आगे पहल रखो।।


 


इतिहास है गवाह संघर्षों


से जो परिचित नहीं होता।


वह दुनिया में कभी भी


चर्चित नहीं होता।।


अवगुण छोड़ते तब ही


गुण पाते हैं अपना स्थान।


बिन दुःख के भी सुख


कभी हर्षित नहीं होता।।


 


हर किसी से कुछ भी


सीखना वर्जित नहीं होता।


बिना खोये पुराना फिर


नया भी सृजित नहीं होता।।


वृक्ष व्यथित नहीं होते फल


फूल पत्ते भी खोकर।


आती नहीं निर्मलता अहम


भी जो विसर्जित नहीं होता।।


 


कर्म के पूजन से ही भाग्य


मेहरबान भी होता है।


परिश्रमी को जीतने के


लिए पूरा जहान होता है।।


मौसम आने पर ही फल


पकते हैं पूरे जाकर।


धैर्य बुद्धि विवेक से ही


जीवन में सम्मान होता है।।


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बड़े शहर, बड़े मकान।*


               *प्रेम विहीन आलीशान।।*


आजकल घर नहीं ,पत्थर के मकान होते हैं।


*प्रेम* से शून्य खामोश, दिल वीरान होते हैं।।


घर को रैन बसेरा कहना, ही ठीक होगा।


कुत्ते से सावधान दरवाजे, की शान होते हैं।।


 


घर में *प्रेम* भाव नहीं, सूने से ठिकाने हैं।


मकान में कम बोलते ,मानो कि बेगाने हैं।।


सूर्य चंद्रमा की किरणें ,नहीं आती हैं यहां।


संस्कारों की बात वाले, हो चुके पुराने हैं।।


 


हर किरदार में अहम , का भाव होता है।


स्नेह *प्रेम* नहीं दीवारों ,से लगाव होता है।।


समर्पण का समय ,नहीं किसी के पास।


आस्था आशीर्वाद का ,नहीं बहाव होता है।।


 


आदमी नहीं मशीनों , का वास होता है।


पैसे की चमक का, असर खास होता है।।


मूर्तियाँ ईश्वर की होती, बहुत ही आलीशान।


पर उनसे *प्रेम* कहीं नहीं, आसपास होता है।।


 


 *प्रेम* विहीन यहां पर,ऊंचे मचान होते हैं।


मतलब के ही आते, मेहमान होते हैं।।


दौलत से मिलती , नकली खुशी यहाँ।


पैसे पर खड़े घर नहीं ,बड़े मकान होते हैं।


 


एस के कपूर श्री हंस


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