एस के कपूर "श्री हंस"

*रचना शीर्षक।।जिन्दगी रोज़ इक*


*नया सबक सिखाती है।।*


 


हर रोज़ जिंदगी हमें नया कुछ,


बता रही है।


बात अनुभव कीं भी नई वो,


सुना रही है।।


हुम कर देते हैं अनसुना, 


अनदेखा इन्हें।


सच रोज़ जिंदगी हमें आईना,


दिखा रही है।।


 


किताब की मानिंद है जिंदगी,


बस पढ़ते जाईये।


सीखा रही है रोज़ कुछ वह,


जरा करते जाईये।।


यही तो जिंदगी का असली,


फलसफा है।


अपने अच्छे कर्मों से पन्ने,


आप भरते जाईये।।


 


प्रेम को समझो और जरा रिश्तों,


को पहचानो।


नफ़रतों में क्या रखा है जरा,


इस मर्म को जानो।।


तुम भी हो जरूरी और हैं हम,


भी तो जरूरी।


घुलमिल कर रहना ही है अच्छा,


इस बात को मानो।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*


*बरेली।।*


मोब।। 9897071046


                           8218685464


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