कालिका प्रसाद सेमवाल

वाणी वन्दना


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   निर्मल करके तन- मन सारा,


   सकल विकार मिटा दो माँ,


 


    बुरा न करुं माँ किसी को भी


    विनय यह स्वीकारो माँ।


 


 


      अन्दर ऐसी ज्योति जगाओ


      हर जन का उपकार करुं,


 


 


       मुझसे यदि त्रुटि कुछ हो जाय


       उनसे मुक्ति दिलाओ माँ।


 


 


        प्रज्ञा रूपी किरण पुँज तुम


        हम तो निपट अज्ञानी है,


 


         हर दो अन्धकार तन- मन का


         नयै पार लगाओ दो माँ।


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कालिका प्रसाद सेमवाल


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