*मुझको बुला रही हो*
*******************
आज सपन एक
मैंने देखा,
तुम आ रही हो
नूपुर बजा रही हो
अंचल सजा रही हो
कोई गीत गा रही हो
मुझको बुला रही हो
कर कोमल हिला रही हो
भाव उर में जता रही हो
प्रणय कहानी बता रही हो।
वायु पुरवा झकोरती
है पपीहरी भी बोलती
कली घूंघट को खोलती
रस माती है डोलती
भौंरे रंग-रंग आ रहे
मंद बांसुरी बजा रहे
तुम खड़ी हो पास में
मंद-मंद हास में
सुगन्ध भरी सांस में।
थिरक रही लास में
जैसे राधा कृष्ण रास में
गोपियों के संग में
नाच रहे हैं वृंदावन में
जैसे कृष्ण चले गए थे
गोपियों को छोड़कर
मुझसे मुंह मोड़ कर
कह कर नमस्ते
मन्द-मन्द हंसते हंसते।।
********************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें