काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार डॉ ब्रजेन्द्र नारायण द्विवेदी शैलेश वाराणसी

 


 


ही


काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से स्नातक और परास्नातक


गीत, ग़ज़ल, समीक्षा


कुल आठ पुस्तकें प्रकाशित 2कविता,3गीत,2गज़ल,1खण्ड काव्य।


आकाशवाणी और दूरदर्शन से प्रसारित रचनाकार।


2017के सर्वभाषा कवि सम्मेलन में कश्मीरी कविता का गीत में अनुवाद।


सम्पूर्ण भारत की 150से अधिक संस्थाओं से सम्मान पर्याप्त।


उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ से"नरेश मेहता सृजन सम्मान प्राप्त।


500/1सत्यम नगर, भगवान पुर, लंका वाराणसी 221005


मो.नं.9450186712/8127880111


 


कविताएं


 


नवगीत:किस विधि लाएं


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सामने बबूल वन खड़ा, राह रोकने को है अड़ा, मान सरोवर कैसे जाएं। अष्ट कमल दल किस विधि लाएं।।


गिद्धों ने उपवन में डाल दिया डेरा


दिन में ही पसर गया आसुरी अंधेरा


छोड़कर कहार भागे सज्जित शिविकाएं,


पद्मिनियों ने रचीं चिताएं।


अष्ट कमल दल किस विधि लाएं।।01


जाने क्या जाल रचे गर्वित दुर्योधन,


आगे पीछे करता अपना संस्कारित मन,


पग में संकल्पों ने डाल दिया वन्धन


मौन साध देखती दिशाएं।


अष्ट कमल दल किस विधि लाएं।।02


स्वान झुंड बार-बार हवन कुंड घेरे,


स्वार्थ पुंज उनके भी अपने बहुतेरे,


जूझ रहे जाम्बवान, अंगद, नल नील विकट,


हाथ लिए सक्षम समिधाएं।


अष्ट कमल दल किस विधि लाएं।।03


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डॉ ब्रजेन्द्र नारायण द्विवेदी शैलेश वाराणसी


9450186712


 


 


एक नवगीत


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स्वदेशी का है खुला बाजार ।


सीढ़ियों ने किया कारोबार।।


कल नहीं थे पांव जिनके आज हैं वे दौड़ते आसमानी पर्त चढ़कर हैं क्षितिज को चूमते


 पुरातनता पा गई आधार ।


सीढ़ियों ने किया कारोबार।।01


रस्सियों ने लकड़ियों से संधि कर ली


 रिक्त झोली ने प्रगति की चाह भर ली


बहुत मुझ पर आपका आभार। 


 सीढ़ियों ने किया कारोबार।।02


पास में जिनके कभी है ठंस गए गोदाम, 


समय के शीशे में दिखते आज वे गुमनाम 


कौन करता सहज को स्वीकार। 


 सीढ़ियों ने किया कारोबार।।03


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डॉ ब्रजेन्द्र नारायण द्विवेदी शैलेश वाराणसी


 


 


 


एक नवगीत:पांवों में चुभती है पिन


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धुंधला धुंधला दिखता दिन 


पावों में चुभती है पिन।।


सुबह-सुबह कुहरे ने है दे दी दस्तक


झुका झुका सा दिखता सूरज का मस्तक


घूंघटा से झांके दुल्हन।


पावों में चुभती है पिन।।01


मुक्ति मिले कैसे अब मच चुके धमाल से


 चल रहा समय अपनी कछुए की चाल से 


सरक रहा चुपके पल छिन ।


पांवों में चुभती है पिन ।।02


आसमान की गाथा सहम -सहम बांच रही,


आंगन में इस कोने उस कोने नाच रही,


रुष्ट हुई काली नागिन।


पावों में चुभती है पिन।।


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वाराणसी भारत 221005


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