काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

साहित्यकार का परिचय


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(1)नाम----


 


(2)पिता- श्री नंदकिशोर जी खरे


 


(3)माता- श्रीमती शकुंतला खरे


 


(4)वर्तमान पता---आज़ाद वार्ड-चौक, मंडला(मप्र)-481661


 


(5) स्थायी पता---ग्राम -प्राणपुर(चन्देरी),ज़िला-अशोकनगर, मप्र---473446


 


(6)फोन--9425484382(कॉल व व्हॉट्सएप) 


 


 (7)जन्म- 25-09-1961


 स्थान- ग्राम प्राणपुर(चन्देरी) ,ज़िला-गुना (तत्कालीन/अब-अशोकनगर,मप्र-473446


 


(8) शिक्षा-एम.ए(इतिहास)(मेरिट होल्डर),एल- एल.बी,पी-एच.डी.(इतिहास) 


 


(9)व्यवसाय----शासकीय सेवा,  


प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास


कार्यालय----शासकीय जे.एम.सी.महिला महीविद्यालय,मंडला(म.प्र.)


(10)प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां --


*चार दशकों नें देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित 


*गद्य- पद्य में कुल 17 कृतियां प्रकाशित। 


*प्रसारण-----रेडियो(38 बार),भोपाल दूरदर्शन (6बार),ज़ी-स्माइल,ज़ी टी.वी.,स्टार टी.वी., ई.टी.वी.,सब-टी.वी.,साधना चैनल से प्रसारण ।


*संपादन---9 कृतियों व 8 पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन ।


*विशेष---सुपरिचित मंचीय हास्य- व्यंग्य कवि, संयोजक,संचालक,मोटीवेटर,शोध- निदेशक,विषय विशेषज्ञ,रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर के इतिहास विभाग के अध्ययन मंडल के तीसरी बार व शासकीय पी.जी.ओटोनॉमस कॉलेज अध्ययन मंडल(इतिहास) के सदस्य ।   


एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन


125 से अधिक कृतियों में प्राक्कथन/ भूमिका का लेखन ।


250 से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन


राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में150 से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति


सम्मेलनों/ समारोहों में 300 से अधिक व्याख्यान 


250 से अधिक कवि सम्मेलन ।


450से अधिक कार्यक्रमों का संचालन ।


सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र------देश के लगभग सभी राज्यों में 600 से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन ।


सर्वप्रमुख अवार्ड--- म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय अवार्ड(निबंध )।


आजाद वार्ड,मंडला,मप्र-9425484382


 


 


माँ


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माँ जीवन की हर खुशी,माँ जीवन का गीत। 


माँ है तो सब कुछ सुखद,माँ है तो संगीत।। 


         


माँ है मीठी भावना,माँ पावन अहसास। 


माँ से ही विश्वास है,माँ से ही है आस।। 


 


वसुधा-सी करुणामयी,माँ दृढ़ ज्यों आकाश। 


माँ शुभ का करती सृजन,करे अमंगल नाश।। 


 


माँ बिन रोता आज है,होकर 'शरद'अनाथ। 


सिर पर से तो उठ गया,आशीषों का हाथ।। 


       ----प्रो शरद नारायण खरे


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उजियारे का गीत


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अँधियारे से लड़कर हमको,उजियारे को गढ़ना होगा !


डगर भरी हो काँटों से पर,आगे को नित बढ़ना होगा !!


 


           पीड़ा,ग़म है,व्यथा-वेदना,


             दर्द नित्य मुस्काता


            जो सच्चा है,जो अच्छा है,


             वह अब नित दुख पाता


 


किंचित भी ना शेष कलुषता,शुचिता को अब वरना होगा !


डगर भरी हो काँटों से पर,आगे को नित बढ़ना होगा !!


 


           झूठ,कपट,चालों का मौसम,


          अंतर्मन अकुलाता


          हुआ आज बेदर्द ज़माना,


            अश्रु नयन में आता


 


जीवन बने सुवासित सबका,पुष्प सा हमको खिलना होगा !


डगर भरी हो काँटों से पर,आगे को नित बढ़ना होगा !!


 


              कुछ तुम सुधरो,कुछ हम सुधरें,


               नव आगत मुस्काए


               सब विकार,दुर्गुण मिट जाएं,


             अपनापन छा जाए


 


औरों की पीड़ा हरने को,ख़ुद दीपक बन जलना होगा !


डगर भरी हो काँटों से पर,आगे को नित बढ़ना होगा !!


 


                     --


 


उजियारे का गीत


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अँधियारे से लड़कर हमको,उजियारे को गढ़ना होगा !


डगर भरी हो काँटों से पर,आगे को नित बढ़ना होगा !!


 


           पीड़ा,ग़म है,व्यथा-वेदना,


             दर्द नित्य मुस्काता


            जो सच्चा है,जो अच्छा है,


             वह अब नित दुख पाता


 


किंचित भी ना शेष कलुषता,शुचिता को अब वरना होगा !


डगर भरी हो काँटों से पर,आगे को नित बढ़ना होगा !!


 


           झूठ,कपट,चालों का मौसम,


          अंतर्मन अकुलाता


          हुआ आज बेदर्द ज़माना,


            अश्रु नयन में आता


 


जीवन बने सुवासित सबका,पुष्प सा हमको खिलना होगा !


डगर भरी हो काँटों से पर,आगे को नित बढ़ना होगा !!


 


              कुछ तुम सुधरो,कुछ हम सुधरें,


               नव आगत मुस्काए


               सब विकार,दुर्गुण मिट जाएं,


             अपनापन छा जाए


 


औरों की पीड़ा हरने को,ख़ुद दीपक बन जलना होगा !


डगर भरी हो काँटों से पर,आगे को नित बढ़ना होगा !!


 


                     --


 


 


गीतिका


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आशाओं के दीप जलाने का यह अवसर है, 


अब तो प्रिय मुस्कान खिलाने का यह अवसर है ।


 


वक्त़ रहा प्रतिकूल सदा ही, पर हो ना मायूस, 


अब उजड़ा संसार बसाने का यह अवसर है ।


 


व्देष, बैर,कटुता ने बांटा भाई-भाई को,


वैमनस्य-दीवार ढहाने का यह अवसर  है ।


 


लेकर हाथ चलें हाथों में,मिलें क़दम क़दम से, 


चैन-अमन का गांव बसाने का यह अवसर है ।


 


पीर,दर्द,ग़म और व्यथाओं का है यह आलम,


मानव-मन को आज सजाने का यह अवसर है ।


 


महके मानवता का घरअब,अपनापन बिखरे,


 


नेह,प्रेम के भाव निभाने का यह अवसर है ।


 


बहुत हो चुका तंद्रा तोड़ो,उठो 'शरद'अब सारे,


अब तो हमको कुछ कर दिखला


 


 पीड़ा का गीत


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उजियारे को तरस रहा हूं,अँधियारे हरसाते हैं !


अधरों से मुस्कानें गायब,आंसू भर-भर आते हैं !!


 


अपने सब अब दूर हो रहे,


हर इक पथ पर भटक रहा


कोई भी अब नहीं है यहां,


स्वारथ में जन अटक रहा


 


सच है बहरा,छल-फरेब है,झूठे बढ़ते जाते हैं !


अधरों से मुस्कानें गायब,आंसू भर-भर आते हैं !!


 


नकली खुशियां,नकली मातम,


हर कोई सौदागर है


गुणा-भाग के समीकरण हैं,


झीनाझपटी घर-घर है


 


जीवन तो अभिशाप बन गया,


मायूसी से नाते हैं !


अधरों से मुस्कानें गायब,आंसू भर-भर आते हैं !!


 


रंगत उड़ी-उड़ी मौसम की,


अवसादों ने घेरा है


हम की जगह आज 'मैं ' 'मैं ' है,


ये तेरा वो मेरा है


 


फूलों ने सब खुशबू खोई,पतझड़ घिर-घिर आते हैं !


अधरों से मुस्कानें गायब,आंसू भर-भर आते हैं !!


 


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माता का देवत्व


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माता सच में धैर्य है,लिये त्याग का सार !


प्रेम-नेह का दीप ले, हर लेती अँधियार !!


 


पीड़ा,ग़म में भी रखे,अधरों पर मुस्कान !


इसीलिये तो मातु है,आन,बान औ' शान !!


 


माता तो है श्रेष्ठ नित ,हैं ऊँचे आयाम !


इसीलिये उसको "शरद", बारम्बार प्रणाम !!


 


नारी ने नर को जना,इसीलिये वह ख़ास !


माता  पर भगवान भी,करता है विश्वास !!


 


माता से ही धर्म हैं,माता से अध्यात्म !


माता से ही देव हैं,माता से परमात्म !!


 


माता से उपवन सजे,माता है सिंगार !


माता गुण की खान है,माता है उपकार !!


 


माती शोभा विश्व की,माता है आलोक !


माता से ही हर्ष है,बिन नारी है शोक !!


 


माता फर्ज़ों से सजी,माता सचमुच वीर !


साहस,कर्मठता लिये,माता हरदम धीर !!


 


जननी की हो धूप या,भगिनी की हो छांव !


नारी ने हर रूप में,महकाया है गांव !!


 


माता की हो वंदना,निशिदिन स्तुति गान !


माता के


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