काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार नरेश चन्द्र द्विवेदी (शलभ )फर्रुखाबाद,

नरेश चन्द्र द्विवेदी 'शलभ' 


फर्रुखाबाद, UP. 7905055211, सेवानिवृत नगर शिक्षा अधिकारी, फर्रुखाबाद


 


 


 


मेरी लाज रखो बनबारी 


    


    नाहीं चैन दिन रैन 


       कटु लागैं मीठे बैन 


    लागे जब से नैन 


   नंदनंदन के नेह सों l


    


    कोई बात न सुहाति 


  सीरी चांदनी न भाति 


    लगैं सगे भी पराये 


  झरै आगि घिरे मेघ सों I


    


    नाव बीच तेज धार 


   आगे भंवर अपार 


    आके थामौ पतवार 


दौरि आबौ निज गेह सों l


    


    गत कंठ आए प्रान 


लाज राखौ निज आन 


    पंछी उद्धत पय छाड़ि नेह निज देह सों ll


 


 


 


 


क्षणिका 


 


बारे पै बालसखा संग खेलि के 


           दिन बीतो आनंदमयी है l


ज्वानी भी जीवन -संगिनि संग मे 


      हास बिलास में बीति गयी है l


आओ बुढ़ापा हे भगवान जौ 


          जिंदगी कैसी नर्क भयी है l


देह न नेह सहाय करै कोई 


      कैसी विधाता विपत्ति दयी है ll


 


 


उसकी लाठी है शब्द रहित दुनियां जिसकी वशबर्ती है


*****************


उस जगतनियंता का वैभव


             "मतिमंद"चतुर्दिक छाया है


पापों से संचित भौतिक सुख


             पर क्यों इतना इतराया है   


उसके अनुशासन से सूरज 


               चंदा निशि वासर प्रहरी हैं


उसकी अनुकंपा की हाथों 


                    मे देख लकीरें गहरी हैं


उसका स्नेह छितिज तट  


             से नितअमृत वर्षा करता है


मलयानिल प्राणों में पीड़ा 


               लख अनायास ही हरता है 


तेरे इन कुत्सित कर्मों की 


             सोचा है परिणति क्या होगी


हतभाग्य तेरी सदगति तो क्या


                बद से बदतर दुर्गति होगी


हिंसा ,लंपटता, लोलुपता,


                  धोखे के बीज संजोए हैं 


यह निर्विवाद है सत्य सदा


                      वो पाएगा जो बोए हैं 


ऐ नीच नराधभ,नर पिशाच 


                  मानवता कृंदन करती है


उसकी लाठी है शब्द रहित 


             दुनियां जिसकी वशबर्ती है।


 


 


 


 


छवि सिंगार मनहुँ एक ठौरी 


 


अंगन उमंग


  रग रग मे अनंग, 


      जो भी देखे होय दंग 


        ऐसी रचना छबीली सी 


 


कारे कजरारे 


   अनियारे मतबारे नैन 


      कोयल की कूक सी


         सुरतिया सजीली सी l


 


झुकि झुकि झूमि झूमि 


     हाथ सों करेजो थामि 


        ताकें सुधी कामिनी की             


           अँखियाँ नशीली सी 


 


नवयोवना सी 


  सतरंगी तितली सी लगे 


    सोने मे सुहागा देहयष्टि   


       गदरीली सी ll


 


 


सच कहती हैँ दुनियाँ.. 


 


राधा कान्ह की मिताई 


             घनी जानि दिन दिन 


बदनामी डर से बिछोह 


                 दोऊ को कियो l


कैसे हैँ कठोर दुनियां 


            के लोग प्यार को भी 


सात ताले डारिके  


        जलाएँ दोऊ को जिओ l


नटखट कान्ह 


            बृजवनितन बीच राधै 


नैनन के सैनन 


               संदेश सारो दै दियो l  


दोऊ के मुखन की 


       खिली खिली छटा विलोकि 


खुली चोरी जानि 


       मुख को अधोमुखी कियो ll


 


बुढ़ापे की बिडंबना 


***************


हाल है बेहाल, सूखी खाल, धंसे गाल, 


कान दोनोंहू सेअब नाही तनिक सुनातु है l


मुँह मे न दाँत, नाहीं पेट हू मे आंत 


दोऊ अंखियन नाही अब थोरोहू सुझातु है l


कासे कहूँ, कैसे कहूँ, सुनि अठिलैहैं लोग 


दाँत ना सो खात कौर गिरि गिरि जातु है l


बारे पै जा बेटै गोद बैठि के पिअाओ दूध 


सोई बेटा पोतै गोद देत सकुचातु है ll


 


 


 


लाखों मणियारे सर्प 


         छिपे कुंडली मार 


                अपनों के घर 


कुछ के तो आये 


          निकल पँख 


      उड़ने को बैठे हैं तत्पर 


कुछ शैशव मे ही 


           फेन उगलते 


           बढ़े आरहे हैँ सत्वर 


जीवन का कोई 


        लक्ष्य नहीं मारे 


          फिरते हैं इधर उधर 


इनका न कोई 


     अपना सपना बस 


        एक मात्र बिष बमन लक्ष्य 


पशु पक्षी कीट पतंगे 


         क्या मानव शरीर 


                   तक बना भक्ष्य 


इनका न कोई 


        मज़हब विशेष बस 


             मार काट या आगजनी 


पत्थरबाजी बलबा 


       खूंरेजी सब के सब


                    हैँ नागफनी 


ये मानवता के 


        प्रवल शत्रु इन पर 


             नकेल कसना होगा 


प्रछन्न बिषधरों को 


              चिन्हित कर


               परिमार्जन करना होगा 


सौहार्द, स्नेह, 


      आत्मीयभाव के 


         सब साधन हो चुके ब्यर्थ 


इनको बस बीन


         सपेरे की वश मे 


              करने को हैं समर्थ l


 



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