प्रश्न एक सबसे आज पूछ रहे हैं।
राग क्यूं अनीतियों के गूंज रहे हैं?
वेदनाएं खुद में सिमट रही हैं।
भावनाएं घुट कर क्यूं मर रही हैं?
वहशी दरिंदे खुला घूमते हैं क्यूं?
कृत्यों पर अपनें हंस झूमते हैं क्यूं?
मनमानियों को नहीं साध रहे हैं।
नीचता की शीर्षता क्यूं लांघ रहे हैं?
घर से निकलते सहम रही हैं।
बेटियां नित आग में क्यूं जल रही हैं?
चीखें चीख-चीख कर मौन हो रही।
धीरता की सेविका क्यूं धैर्य खो रही?
मानवता सो रही है, सो रहा ईमान है।
न्याय जो दिला न सके कैसा संविधान है?
ऐसे संविधान को तो फाड़ दीजिए।
मौन खलता है अब जवाब दीजिए।।
कंचन कृतिका
गोण्डा-अवध
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