मदन मोहन शर्मा सजल

बदलते जा रहे हैं।


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खाकी वर्दी में दाग भरते जा रहे हैं


गुंडों मवालियों के सर उठते जा रहे हैं,


 


संविधान गूंगा सरकारें लाचार हुई


घुटनों के' बल कानून सरकते जा रहे हैं,


 


संसद कामचोरों का अखाड़ा बन बैठी


अन्यायी आँधी घर उजड़ते जा रहे हैं,


 


बेटियों की आबरू कैसे बचें देश में


घात नशा कुसंस्कार बढ़ते जा रहे हैं,


 


राखियों के धागे हो गए कच्चे यहां


बेटियों की मौत दिल बिलखते जा रहे हैं,


 


राजनेता ने तय किये रकम आँसुओं की


बलात्कारी अट्टहास करते जा रहे है,


 


सरेआम गोली से उड़ा दें कानून हो


जनता दे सजा तेवर बदलते जा रहे हैं।


★★★★★★★★★★★★


मदन मोहन शर्मा 'सजल'


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