मदन मोहन शर्मा सजल

मनहरण घनाक्षरी


01- सपनों का सौदागर, आया मेरे दिल गली


प्यार की आवाज लगा, मन मुस्कराता है।


पापी पाप भर लाया, छल करने को आया


धीमे-धीमे डग भरे, आंखें मटकाता है।


कभी देखे इत उत, जैसे है सुहानी रुत


जुबां प्रेम रस घोल, धोखे से बुलाता है।


हौले से पकड़ हाथ, हिय से लगाया माथ


प्रीत भर चूमा भाल, यादों में सताता है।


 


02- बाहुपाश कस दिया, नशा तन मन छाया


सुध बुध खोई सारी, मदन जगाता है।


वादा करो साथ रहें, हर दुःख मिल सहें


जनमों का नाता रहे, ईश को मनाता है।


भोर की सुहानी ताल, टूटा सपनों का जाल


चला गया परदेशी, सपनें सजाता है।


मन हुआ पर वश, नहीं रहा कुछ वश


बैरी प्रीत भर चला, कुछ न सुहाता है।


★★★★★★★★★★★★


मदन मोहन शर्मा सजल


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