मदन मोहन शर्मा सजल

आश्विन विजयादशमी, अहंकार का नाश। 


जीत हुई थी सत्य की, असत्य बांधा पाश।।01।।


 


अभिमानी रावण मरा, अंत हुए दुष्कर्म। 


विजय दिवस मनता रहा, सुधि जन जाने मर्म।।02।। 


 


लंकापति रावण हुआ। मद में था वह चूर। 


सीता माता हरण कर, इतराया भरपूर।।03।।


 


राम बाण संधान कर, रावण मार गिराय। 


काल बनी दशमी तिथि, विजयादिवस मनाय।।04।।


 


शंकर की सेवा करी, लंकापति लंकेश। 


राम हाथ मारा गया, कपटी असुर विशेष।।05।। 


 


दुष्ट किया सीता हरण, किया कलंकित वंश।


अभिमानी मारा गया, राम किया विध्वंस।।06।।


 


विजयादशमी पर्व है, सत्य पाप पहचान। 


रीत सदा से आ रही, मानव मन में मान।।07।।


 


धूं-धूं कर रावण जले, अहिरावण बलवान।


मेघनाथ का साथ हो, विजयादशमी मान।।08।। 


 


अहंकार जड़ मूल है, करता बुद्धि विनाश।


विजयादशमी सीख है, सत्य सर्वत्र प्रकाश।।09।। 


 


विजयादशमी पर करो, मन संकल्प उचार।


धर्म राह हम सब चलें, त्यागें बुरे विचार।।10।।


★★★★★★★★★★★★


मदन मोहन शर्मा सजल


कोटा 【राजस्थान】


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