मदन मोहन शर्मा सजल

खूनी बाज़ हैं


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गद्दी पर बैठे साँप सपोले, गद्दारी के सरताज हैं


कानूनों की उड़ी धज्जियां, मंडराते खूनी बाज़ हैं।


 


सरेआम चौराहों खेतों गलियों में चौबारों में


लुटती इज्जत अबलाओं की गुंडों का राज हैं,


 


न्यायव्यवस्था नग्न खड़ी है, रक्षक भक्षक बन बैठे


पुलिस भेष में ठगी दिहाड़ी अफसर दगाबाज हैं,


 


नंगा कर उल्टा लटकादो गर्म सलाखें पीठ घुसादो


संगीन सजाएं लागू हो तो कानूनों पर नाज हैं,


 


जो भी रौंदे अबलाओं को दे संरक्षण गुंडों को


ऐसे अत्याचारी बलात्कारी की मौत ही सुख साज है।


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मदन मोहन शर्मा सजल


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