नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

1-जिंदगी के अस्तित्व का पल पल।  


 


 


याद नही वो पल 


दुनियां में रखा कब पहला कदम।।


माँ की लोरी याद नही 


याद है माँ की ममता


के आँचल पल पल।।


याद नही बापू की गोदी ,कंधा


दुनियां में सबसे ऊंचा सिंघासन।।


कुछ कुछ याद आता है


माँ की उंगली पकड़ सीखा


खड़ा होना गिरना औऱ संभालने का पल पल।।


याद है बापू के संग विद्यालय का


प्रथम कदम पल


गुरु से बापू की आशाओं की


संतान का वर्तमान भविष्य की


चाहत वर्णन का वो पल।।


याद हमे आज भी वह पल


जब माँ बड़े गर्व से मेरे गुण गान


बखान करती हर पल।।


कभी कभी तो सुनने वाले 


शर्माते मझ जैसा बनने को करते हकचल।।


पल पल दुनियां को समझने


की जिज्ञासा का पल ।।


 


2- जीवसं संग्राम के पल---            


 


मां बापू का आशीर्वाद 


भगवान का वरदान


जीवन की सच्चाई 


संग्राम के पल।।


धीरे धीरे बढ़ाता पड़ता जीवन


अर्थ का अथर्व पल।।


सामाजिक अच्छाई, कुटिलता


नीति ,नियत के जाने कितने पल।।


पड़ता ,लिखता ,बढ़ाता जाने कब


कहां खो गया बचपन नोक


झोक अभिमान का वह पल।।


हठ करता जो भी मिल जाता


उसी पल खुशियों का वह पल।।


मा बापू को जाहे जो भी पड़ता


करना मेरा हठ हँसी ठिठोली


खुशियो का पल था रहना।।


किशोर जवानी का पल जिम्मेदारी


जिम्मा का जीवन के संग्राम का सच देखता सिखाता पल।।


संघर्ष, परीक्षा ,परिणाम के पल


आशा और निराशा के पल


जीवसं की सच्चाई का पल पल।।


 


3--प्रेम प्रणय मधुमास बसंत पल


 


 जीवन मे कुछ खुशियो के पल


प्यार यार की आशिकी मोहब्बत के


पल पल।।


कमसिन ,नादा ,भोली ,नाज़ुक


मुस्कान जिंदशी प्राण का


हर पल।।


वचन ,प्रतिज्ञ ,रीति ,प्रीति का


जीवन मे साथ निभाने की


सांसो धड़कन का धक धक का


पल।।


मादकता जीवन मधुवन


कली कचनार का मुरझाना फिर खिल


जाना प्रणय प्रतीक्षा साक्षात ,सपनो


हृदय भाव मकरंद गुंजनकरता पल पल।।


मगनी, रश्म जयमाल सात


जन्मो के बंधन का सतरंगी पल।।


चांद चादनी की परछाई प्रथम


प्रणय का प्रियतमा का पल।।


जीवन माँ बापू से विलग संसार


सांसारिकता का प्रथम कदम पल।।


पल पल चलती जिंदगी का हर पल


खास खासियत का पल।।


 


4---बिछोह विक्षोभ का पल ---              


 


मिलन विरह का पल 


विश्वाश नही था माँ बापू


ना होंगे संग का पल।।


ना जाने कौन सा पल मनहूस


काहू या परम्परा का पल ।।


जीवन मे आने जाने का पल 


पल जिस कोख पैदा पल भर में हुआ


जुदा पल।।


वात्सल्य का आँचल पल भर


में ओझल बापू की गोदी ने आंखे मूंदी


काँहे का सिंघासन चार कंधो


का पल भर का आसन पल।।


क्या अजीब है जीवन 


जिनके कारण है जीवन 


उन्ही काया अस्तित्व को 


आग लगाने का आता है


पल।।


कैसे कोई भुला सकता जीवन


खुशियो गम आंसू प्यार मोहब्बत


 अक्षय अक्षुण का पल पल।।


 


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


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