निधि मद्धेशिया ( नम ) कानपुर

*मुक्तक*


 


रोम-रोम दर्द में भीगा बचाओ न कोई।


हो-कर मेरा नहीं, क्यों बताओ न कोई।


जल्दबाजी में भाव गूँथे जाती हूँ अब बस,


मैं अबला हूँ मुझको सताओ न कोई। 🌹🎸


 


*काव्य*


 


परिभाषित करे प्रेम


नहीं जन्मी वो कलम।


चाह मृणालिनी बनूँ


जन्मा नहीं वो कमल...🌹✍🏻


 


 


*काव्य*


 


वो अधूरा-सा है, मैं अधूरी-सी हूँ।


वो खारा-सा है, मैं ताल-नदी-सी हूँ।


रचा मिलन क्षितिज पर हमारा


वो जरूरत-सा है, मैं जरूरी-सी हूँ।🌹✍🏻


 


*मुक्तक शैलाब*


 


बड़े गाढ़े रुआब हैं उनके।


छल भी लाजवाब हैं उनके।


बंदिशें हमने सह ली सारी,


फल सपन शैलाब हैं उनके।🌹✍🏻


 


 


निधि मद्धेशिया ( नम )


कानपुर


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