गीत
8.10.2020
अंतर्मन
कहाँ छुपे हो तुम बनवारी
ढूंढ रही विपदा की मारी
कब आओगे कृष्ण मुरारी ।
कहाँ गए तुम मुझे बताओ
इतना ना तुम मुझे सताओ ।
भटक रही हूँ जग की मारी
कब आओगे कृष्ण मुरारी ।
ढूंढ रही विपदा की मारी
कहाँ छुपे हो तुम बनवारी ।
बंसी की धुन,यमुना का तीरा
ढूंढ रही मैं बन कर मीरा ।
मन बेकल से तुम्हें पुकारूँ
कब आओगे प्रियतम प्यारे।
ढूंढ रही विपदा की मारी
कहाँ छुपे हो तुम बनवारी ।
अंतर्मन में तुम्हीं बसे हो
तन मन प्रण में तुम रहते हो ।
फिर क्यों इतनी देर लगा दी
अखियाँ ढूंढे विरह की मारी ।
ढूंढ रही विपदा की मारी
कहाँ छुपे हो तुम बनवारी ।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
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