मां की आंचल
मां तेरा लाल हूं, मै
तू मुझे,भुल न जाना
जैसा भी हूं,तेरा संतान हूं
अपनी,आंचल में छुपा लेना
भुला हुआ था,तुझको मै
आज फिर से,पुकारा हूं
हर युग में तू,प्रगट हुईं है
लेकर एक, अवतार
हो जाऊ मैं, तुझमे ऐसी मगन
अपनी आंचल में,छुपा लेना
उलझा रहा,अब तक जहां के
झूठे झूठे,ख्यालों में
पैरों में,मोह माया की
जंजीर पड़ी हुई थी
तू शक्ति स्वरूप है, मां
अपनी आंचल में,छुपा लेना
मां की जयकारा से
मिलता है, आत्म ज्ञान
जो हर रोग की
करता है,निदान
मुझ पर,कृपा हो तेरी
अपनी आंचल में,छुपा लेना
भुला हूं मैं,भटका हूं मैं
मेरा कोई नहीं, जहां में
मुझको है,तेरी ही आसरा
जग के,तारणहार हो
इस दास के, सिर पर हाथ रख दे
अपनी आंचल में, छुपा लेना
मेरे जीवन की डोर,अब तो
कर दी, तेरे हवाले
बेड़ा पार लगाने वाला
कोई और नहीं है
तुम हो जग की माता ,मै हूं पुजारी
अपनी आंचल में, छुपा लेना
नूतन लाल साहू
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