नूतन लाल साहू

धन की माया


 


आत्म ज्ञान बिना,नर भटके


क्या मथुरा, क्या काशी


अरे मन तू,किस पै भूला है


धन की माया है,न्यारी


तेरे मां बाप और भाई बंधु


सभी स्वार्थ के है,साथी


तेरे संग,क्या जायेगा बंदे


धन की माया है,न्यारी


ये जगत,धोखे की दुनिया है


न तेरा है,न मेरा है


यह बिस्तर,ख़ाक में होंगे


धन की माया है,न्यारी


बिन हरि कृपा,कुछ नहीं पावे


लाख उपाय करें,कोई


गुरु बिन मुक्ति न होता है,जग से


धन की माया है,न्यारी


परोपकार में द्रव्य,खर्च हो


ऐसी कमाई,तू कर ले


मत हो डांवाडोल,तू जग में


धन की माया है,न्यारी


छोड़कर,सारे वतन को


तू अकेला,जायेगा


कौड़ी कौड़ी,माया जोड़ी


धन की माया है, न्यारी


जब निकलेंगे, प्राण तेरे


यहां का यहां,रह जायेगा


इस काया का, गुमान न कर


धन की माया है, न्यारी


जीते जी का, है उजियारा


आगे रैन, अंधेरी है


कहत कबीर,सुनो भाई साधो


धन की माया है, न्यारी


नूतन लाल साहू


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