किसी से,बैर मत कीजिये
क्यों आया है,इस संसार में
कौन बतायेगा,इस सच को
इस रहस्य को,आज तक
नहीं समझ पाया,कोई भी
रोजी रोटी और सम्मान
सबको प्रभु ने ही,दिया है
पता नही, इंसान क्यों
अपना,नाम बताता है
सब कुछ,रब पर छोड़ दें
किसी से,बैर मत कीजिये
होनी तो होकर ही रहेगा
कोई बदल नहीं पाया है
जिन प्रश्नों का हल नहीं
उसमे ब्यर्थ,क्यों उलझ रहा है
हुआ न तेरा काम तो भी
गम न कर, तू इंसान है
इसमें भी,कुछ भला है
कहते हैं,भक्त वत्सल भगवान
निश्चित तो,केवल मृत्यु है
किसी से, बैर मत कीजिये
ऊपर से तो,दोस्ती
भीतर है, विष के ताज
अगर छीना,किसी गैर का हक
तो समय,ना करे माफ
जिसकी,जितनी है पात्रता
उतना ही,धन सम्मान
बैठा तो है,सबके हृदय में
जग का पालनहार
जो निर्णय है,समय का
उसको,हंसकर तू मान
ये जिंदगी है,दिन चार का
किसी से, बैर मत कीजिये
नूतन लाल साहू
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