नूतन लाल साहू

बेमौसम बारिश


 


कोनो मेर ये, फुसुर फासर


कोनो मेर, विस्फोटक


झमाझम बरसत हे,पानी


सब बर हे,हानि च हानि


काकरों तो,घर द्वार ल बोरे


काकरॊ तो,रास्ता ल रोके


जब कड़के,बिजली रानी


मउत बनके, बरसत हे पानी


सब बर हे, हानि च हानि


रात दिन में ह,बोहे रहिथौ


ये दुःख के,ओ छानी परवा ल


घर में तो खाये बर, दाना ह नइहे


कहां ले आही, पइसा ह चरिहा चरिहा


झमाझम बरसत हे,पानी


सब बर हे, हानि च हानि


घर में पानी,खेत में पानी


तन में पानी,मन में पानी


तरबतर पानी,सरवर पानी


यत्र तत्र सर्वत्र,पानी


फसल ह बरबाद, होवत हे


कइसे चलही,हमर जिनगानी


झमाझम बरसत हे,पानी


सब बर हे,हानि च हानि


खोंधरा में, चिरई चिरगुन कलेचुप


कापय बेंदरा, नरियावय हुप


अपन पाव पसारे,आदमी


रतिहा म,चैन के नींद सो ही कब


कोनो मेर ये,फुसुर फासर


कोनो मेर, विस्फोटक


झमाझम बरसत हे,पानी


सब बर हे,हानि च हानि


नूतन लाल साहू


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