प्रिया चारण उदयपुर राजस्थान

विषय :- पैसा


 


"कलयुगी कागज़ पैसा"


 


कलयुगी कागज़ पैसा कोई न इसके जैसा,


कलियुग का है कागज़ ,तिज़ोरी है जिसका घर,


 


वजन हो जेब मे तो ,मन रहे इंसान का पप्रसन्न ,


न हो पैसा पास तो तड़पता है ! इंसान का अंतर-मन।


 


पैसा हो जिसके पास, उसके साथ लगे हर रिश्ता खास,


न हो पैसा जिसके पास ,उससे खून का रिश्ता भी,


लगे बक़वास।


 


पैसा हो तो अनजान भी ,दूर की रिश्तेरदारी ढूंढ़ लाए।


दरिद्र को भला कौन अपना ,मित्र और रिश्तेदार बतलाए।


पैसा बैर कराए , भाई भाई को वैरी बनाए,


कलयुगी कागज़ पैसा कोई न इसके जैसा।


 


पैसा-पैसा तूने कैसा मायाजाल रचाया ,


मानव को दानव बनाया,


 


दिखवे का दान हर कोई कर जाते है।


बिना सेल्फ़ी के 1 फूटी कोड़ी भी न दे पाते है।


मांग कर बरकत लाखों की ,


दान के वक्त हाथ चवन्नी खोजने लग जाते है।


 


कितने भी पैसे कमाओगे ,


फिर भी 2 गज़ कफ़न में लिपटकर जाओगे,


 


पैसा ,बंगाला कार देखकर ,क्यु इतना इतराता है।


खून के रिश्तों को भुलाकर ,


कागज़ के टुकड़ों को गले लगाता है।


 


मिली थी जिन्दगी किसी के काम आने के लिए ,


बीत रही है कागज़ के टुकड़े कमाने के लिए।


 


कलयुगी कागज़ पैसा कोई न इसके जैसा।


 


प्रिया चारण उदयपुर


राजस्थान


8302854423


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...