राजेंद्र रायपुरी

 आलस छोड़ो 


 


आलस छोड़ो जागो भाई।


  देखो पूरब लाली छाई।


    उठो सैर पर तुमको जाना,


      मुर्गे ने भी बाॅ॑ग लगाई।


 


चिड़िया देखो चहक रही है।


  बाग चमेली महक रही है।


    कली-कली देखो मुस्काई,


      आलस छोड़ो जागो भाई।


 


सूर्य रश्मि अब आने वाली।


  इसीलिए पूरब है लाली।


    तम की करती वही विदाई,


      आलस छोड़ो जागो भाई।


 


नभ तारे नहिं पड़ें दिखाई।


  सबने ले ली भोर बिदाई।


    तोता भी आवाज लगाए,


      आलस छोड़ो जागो भाई।


 


उठो काम पर तुमको जाना।


  खाना-पीना और नहाना।


    कब तक लोगे तुम ॲ॑गड़ाई,


      आलस छोड़ो जागो भाई।


 


जो सोते हैं, वो खोते हैं।


  पछताते, पीछे रोते हैं।


    झूठ नहीं ये, है सच्चाई।


      आलस छोड़ो जागो भाई।


 


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


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