राजेंद्र रायपुरी

 सिपाही सरहद का


 


शरहद पर तैनात सिपाही, 


                रक्षक बनकर खड़ा हुआ है।


 


हिला नहीं सकता कोई भी, 


                 वह पर्वत सा अड़ा हुआ है।


 


धूप-ताप से डरे नहीं वह,


                  शोलों में तप बड़ा हुआ है।


 


उसे छाॅ॑व की चाह नहीं है,


               धूप -ताप यदि कड़ा हुआ है। 


 


भूख न विचलित करती उसको,


                  भूखे- प्यासे खड़ा हुआ है।


 


कर्मठ है वह तभी देख लो,


                  वर्दी तमग़ा जड़ा हुआ है।


 


             ।। राजेंद्र रायपुरी।।


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