😌 सरसी छंद पर रचना 😌
हे प्रभु मेरे आ जाओ तुम,
फिर से ले अवतार।
बढ़े दुष्ट फिर से दुनिया में,
दुखी बहुत संसार।
विनती यही आपसे मेरी,
प्रभु जी बारंबार।
आकर इन सारे दुष्टों का,
कर दीजै संहार।
नहीं यहाॅ॑ पर भाई-चारा,
या आपस में प्यार।
बात-बात पर हर दिन होती,
आपस में तक़रार।
पाप बढ़ रहा सुरसा मुॅ॑ह सा,
बढ़ता अत्याचार।
मचा हुआ है देखो प्रभु जी,
चहु दिश हाहाकार।
पापी कुटिल चाल चल-चलकर,
करें देह व्यापार।
नारी पर तो हर दिन सारे,
करते अत्याचार।
हे प्रभु जी अब देर करो मत,
जल्दी लो अवतार।
मैं ही नहीं जगत सारा ये,
करता यही पुकार।
।। राजेंद्र रायपुरी।।
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