लो चलते हैं हम
तुम्हारी दुनिया से दूर
तुम्हारे ख़यालो से दूर
तुम्हारी सोच से दूर
अपनी गठरी समेट कर
अपने यादों को समेट कर
अपने शब्दों को समेट कर
किस्से कहानियों को समेट कर
क्योंकि तुम ही कहते थे
अब हमें दूरी बना लेनी चाहिए
लो अब बनाते हैं दूरी
धरती और आसमान के बीच
प्यासे और प्यास के बीच
धोखा और विश्वास के बीच
ये दूरी ही हमारी मुकद्दर है
शायद कोई समझेगा
कभी हमारे इश्क़ को
हमारी चाहत को
तब तलक हम बहुत दूर
चले गए होंगें इस दुनिया से।
©️सम्राट की कविताएं
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