काम बहुत थे सफर की शाम मुझे
पर फिर भी मैं मैसेज देखता रहा
हर टुडूंग की आवाज पर तुझे मैं
अपनी यादों में थोड़ा सहेजता रहा
जाकर बरामदे में किसी बहाने से
तेरी डीपी जूम करके देखता रहा
ना कोई फोन आया ना मैसेज तेरा
सफर में तेरा लास्ट सीन देखता रहा
सुबोध कुमार
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