मैं क्या हूं
सवाल ये नहीं है मैं क्या हूं
और मैं क्या नहीं हूं
मैं क्या हूं और क्या नहीं हूं
मैं ये सोचता ही नहीं हूं
मैं जो भी हूं और जैसा भी हूं
पर मैं गलत तो नहीं हूं
मैं जो देखता हूं और सुनता हूं
मैं वह समझता तो नहीं हूं
इस समाज की शक्ल में जो है
मैं वह दायरा तो नहीं हूं
मैं समझा गया ही नहीं कभी
वह फलसफा तो नहीं हूं
मैं चला जाता कहां पर रूठ कर
नफरतों का सिलसिला तो नहीं हुं
कैसी मीना और कैसा मयखाना
मैकदे में हाजिर ही नहीं हूं
यकीन करता हूं ज्यादा तो क्या
पर मैं कुछ भूला तो नहीं हूं
वह तौफीक दी है ऊपर वाले ने
कि मैं नाशुक्रा भी नहीं हूं
जाते जाते बस कहे जाता हूं मैं
मैं जो हूं बस वही हूं बस वही हूं
सुबोध कुमार
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