कविता:-
*"हँसते-हँसते"*
"थक गये कदम साथी,
चलते-चलते।
ढ़ल गई शाम प्रतीक्षा,
करते करते।
छाने लगे अंधेरे राहे,
तकते-तकते ।
गहराने लगी रात फिर,
डरते डरते।
आने लगी नींद साथी,
थकते थकते।
देखे मीठे सपने साथी,
हँसते-हँतते।।
ःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता
ःःःःःःःःःःःःःःःःः 06-10-2020
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें