कविता:-
सपने ले नव-आकार
दु:ख की अनुभूति से ही यहाँ,
होता सुख का आभास।
सुख ही सुख होता जीवन में,
न होता मन में विश्वास।।
बढ़ता रहे विश्वास मन का,
ऐसी हो जग में आस।
बनी रहे आस्था प्रभु में,
टूटे नहीं ये विश्वास।।
हरे काम- क्रोध-मद्-लोभ,
जीवन को दे आधार।
सद्कर्मो संग जीवन में फिर,
सपने ले नव-आकार।।
सुनील कुमार गुप्ता
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें