जैसा है महीना वैसा ही साल गया है।
इस रोग करोना ने बुरा हाल किया है।
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आजाद वतन है भले मक्कार नहीं कम।
आस्तीन के नागों ने दिया इसको दगा है।
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पूरे किए हैं बाप ने संतान के सपने।
पर बाद में उनसे ही मिला जख्म सहा है।
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जीता नहीं कोई है हमेशा ही यहां पर।
आया है वहां से जो वो वापस भी गया है
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जिसमें नहीं है प्रेम दया घोर पशु वो।
बेकार ही इंसान वो दुनिया में रहा है।
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सुनीता असीम
८/२/१०/२०२०
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