सुनीता असीम

नशा शराब का सा है ख़ुमार भेजा है।


खिला खिला सा हुआ दिल करार भेजा है।


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जिसे गुरू था बताया हमें जमाने ने।


मगर असल में यहां इक लबार भेजा है।


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किसी भी रूप में नफ़रत हमें नहीं भातीं।


इसीलिए उन्हें फूलों का हार भेजा है।


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वो छा गया है मेरे अब हवास पर ऐसे।


कि रोक मन पे लगाने सवार भेजा है।


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ये चाहती है सुनीता कि ज़िंदगी जी लूँ।


इसीलिए ख़ुदा ने इक विचार भेजा है।


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सुनीता असीम


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