जो ग़मों से गुजर गया हूँ मैं।
लग रहा है निखर गया हूँ मैं।
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चाहिए था नहीं वहां जाना।
ख़ारों पे पर उतर गया हूँ मैं।
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शक रहे कुछ रहे शुब्हे मुझको।
देख अंजाम डर गया हूँ मैँ।
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रास आई नहीं मुहब्बत भी।
बस जफ़ा से सिहर गया हूँ मैं।
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इश्क के नाम से लगा डर है।
ख़ौफ लगता जिधर गया हूं मैं।
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सुनीता असीम
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