तुम कहो रूठकर हम किधर जाएंगे।
अब रहोगे जिधर तुम उधर जाएंगे।
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फेर लोगे अगर आप हमसे नज़र।
तो खुदा की कसम हम बिखर जाएंगे।
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आपकी जुस्तजू सिर्फ दिल में रही।
आपका वस्ल पा हम निखर जाएंगे।
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हिज्र पाके समझ आ गया ये हमें।
आपके साथ अब दिल जिगर जाएंगे।
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रास्ते में अगर आ गए ख़ार तो।
पांव रखकर उन्हीं पर गुज़र जाएंगे।
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प्यार सच्चा अगर साजना का रहा।
हम नहीं फिर इधर से उधर जाएंगे।
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आरज़ू अब सुनीता यही कर रही।
हम इन्हीं आशिकों के नगर जाएंगे।
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हम तो डरते हुए दीवार से लग जाते हैं।
देख के भूत को बीमार से लग जाते हैं।
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इस कदर प्यार उन्हें करते रहे हैं हम तो।
वो हमें इश्क की दरकार से लग जाते हैं।
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मुस्कराकर वो हमें देख लिया करते जो।
ख्वाब अपने सभी साकार से लग जाते हैं।
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है जमाने को खबर इश्क की अपने ऐसी।
सबकी दीवार पे इश्तिहार से लग जाते हैं।
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ऐसी बेमोल मुहब्बत की तमन्ना सबको।
इसको पाने को खरीदार से लग जाते हैं।
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सुनीता असीम
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