सुनीता असीम

मुहब्बत बेवफा हो तो कज़ा है।


निभाना यार से यारी मजा है।


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बड़ा आसान है दिल तोड़ना पर।


नहीं मुश्किल दिलों को जोड़ना है।


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भला या तो बुरा तुमको कहेगा।


जमाने की रही जिसमें रज़ा है।


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डगर में ख़ार मिल जायें समझना।


परीक्षा ले रहा अपनी खुदा है।


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कसौटी पर कसेगा फिर निखारे।


ख़ुदा की ये अनो खी सी अदा है।


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उन्हें भी ज़िन्दगी जीना न आया।


जिन्हें लगती रही रही ये तो सज़ा है।


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सुनीता कह रही सबसे यही बस।


जहां में जिंदगी जीना कला है। 


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सुनीता असीम


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